लेखिका अनु सिंह चौधरी (Anu Singh Choudhary) की तीसरी किताब और पहला उपन्यास ‘भली लड़कियाँ
बुरी लड़कियाँ’ पाठकों के सामने आया। लेखिका के लिखने का अंदाज़ एकदम सरल व दिल को
छू लेने वाला रहा है । जो लोग उपन्यास पढने के शुरुआत करना चाहते उनके लिए एक
अच्छा विकल्प है।
यह उपन्यास उन लड़कियों की बात करता है, जो अपनी लड़ाई लड़ने के लिए अपने रास्ते खुद बनाने की कोशिश करती हैं। लेकिन आप इस
उपन्यास को पढ़ने के बाद ध्यान से सोचें तो पाएंगे कि इसका मूल विषय एक ऐसी घटना, जो इस देश की हर सड़क पर हर दिन होती है, लेखिका अनु सिंह चौधरी इसके बारे में ही लिखती है।
इस उपन्यास को पढ़ने से आपको इस बात का ज्ञान होगा कि जो
लड़कियाँ दिल्ली में सिर्फ पढ़ने का अरमान लेकर आती हैं, उनकों दिल्ली की आम – सी
लगती पर क्रांतिकारी ज़िन्दगी को किस तरह से अपनाती हैं,
और यह शहर
इन लड़कियों को कितना अपनाता है।
सिर्फ पढ़ने का अरमान लेकर पूजा प्रकाश बिहार के एक छोटे से शहर मुज़फ्फ़रपुर
से अपने सपनों और आम्मा की उम्मीदों का सूटकेस लेकर दिल्ली चली आती है। अठारह साल की पूजा प्रकाश ने पुलिस अफ़सर बनने के मुश्किल सपने को पूरा कर ने के लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी
मे एडमिशन और रहने कि व्यवस्था अरोरा’ज
पीजी मे कर लेती है। इस उपन्यास की कहानी अरोरा’ज पीजी मे पूजा प्रकाश के साथ रहने वाली मेघना सिम्ते, सैम तनेजा, और
देबजानी घोष जो अलग-अलग परिवेश से आयी हुई लडकियों की है। पूजा प्रकाश को इन्ही
लडकियों के साथ रह कर जाना कि सुन्दर आखें वो नहीं होती जो अकसर अम्मा कहती थी कि “सुन्दर
आँखे वो होती है जिन पर पढ़ते-पढ़ते चश्मा लग जाता है” सुन्दर आँखे दिखने के लिए
कोल, काजल, मस्कारा और आई-लईनर और भोहें दुरुस्त करने के लिए टिव्जर के साथ-साथ
पंद्रह दिन मे एक बार थ्रेडिंग की जरुरत होती है।
दिल्ली की रोज़मर्रा की ज़िन्दगी के संघर्ष, दिल्ली यूनिवर्सिटी
में छात्र संगठनों की राजनिती, अपने साथ
रहने वाली सैम की शराब, सिगरेट, के साथ लड़को की दोस्ती, देबजानी की सोशल मीडिया के
साथ दीवानगी, और फोन पर अम्मा से की गई बातों मे अम्मा का वो याद दिलाना कि पूजा
तुमको पुलिस अफ़सर बनना है, सही से पढ़ाई करना, हमारी नाक ना कटवादेना की जद्दोज़ेहद
का सामना करने जवानी की दहलीज़ पर क़दम
रखती पूजा प्रकाश के प्रेम में पड़ने, धोखे खाने, और उन धोखों से सबक लेते हुए अपने प्रेमी को सबक सिखाने की
सतर्क चालें बुनने की कहानी बयाँ करता है। “भली लड़कियाँ, बुरी लड़कियाँ”
भली लड़कियाँ बुरी लड़कियाँ (Bhali Ladkiyan, Buri Ladkiyan) किताब की कुछ दिलचस्प लाइन
“याद है न ! इस साल साल
4 जुलाई को 18 साल के हो जाएंगे हम अम्मा। वोट देंगे, पसंद की सरकार
चुनेंगे। ड्राइविंग लाइसेंस लेंगे। चाहे तो शादी भी कर लें भाग के।”
“ठहराव बांधता है और वहाब अन्मुक्त करता है ।”
“टीनएज बड़ी जालिम शय है । घर में फूड डलवा दें, दोस्तों के बीच दरार
पैदा करवा दे, अच्छे-भले शांतिप्रिय परिवार में कलह मचा दे !”
“भूख और प्यास न जूठा - कच्चा देखते हैं न झूठा-सच्चा।”
“कागजों पर इंतहान देकर नंबर ले आने से कहीं मुश्किल है, तर्कसंगत वाद-विवाद करना।”
“आजादी सबसे बड़ा दिलफरेब भ्रम है। और उससे भी बड़ा फरेब है
प्रेम।”
“डर का सामना करने का एक ही तरीका है जिससे डर लग रहा हो
उससे आंखें मिलाना।”
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